सुबह का वक्त था। घर के बाहर, लॉन में, मिस्टर त्रिपाठी, टहल रहे थे, कि अचानक, उनका एक पड़ोसी आया, उन्हें गुस्से में भला-बुरा कहने लगा। किसी पुरानी बात को लेकर, उनका बहुत झगड़ा हुआ। लेकिन जब उस आदमी का, गुस्सा शांत हुआ, तो उसे एहसास हुआ कि उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है। अब उसे दुख हो रहा था कि, उसने किसी को इतना गलत कैसे बोल दिया। काफी परेशान था, इसलिए, अपने फैमिली के गुरु के पास गया और उन्हें सारी बात बताई। कहने लगा, मैं पश्चाताप करना चाहता हूं, कोई उपाय हो, तो बताएं। गुरु ने कहा- एक काम करो, 100 पंख इकट्टा करो और उन्हें एक चौराहे पर रख दो। उस आदमी ने, पंख इकट्टा करके, चौराहे पर रख दिए। और वापस गुरु के पास गया। जब वो वहां पहुंचा, तो गुरु ने उसे दोबारा कहा- अब जाओ, उन पंखों को मेरे पास लेकर आओ।
वो आदमी वापस गया, लेकिन वहां एक भी पंख नहीं था। सारे पंख, हवा में इधर-उधर उड़ गए थे। वो खाली हाथ गुरु के पास लौट आया। और उन्हें बताया कि पंख वहां नहीं हैं। गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा - जुबां से निकली हर बात भी, इन्हीं पंखों की तरह है। एक बार उड़ गए, तो फिर हाथ नहीं आएंगे। किसी को गलत कहा, तो उसकी माफी मांग सकते हैं, लेकिन आपके शब्दों से, सामने वाले इनसान के दिल पर जो चोट लगती है, वो कभी नहीं भरती।